Thursday, July 5, 2012

दूसरा भाग - पुन : मिलन


कुछ सालो बाद बेटे का माँ को फ़ोन आया, 
" माँ, राहुल को विदेश में नौकरी मिल गयी हैं , 
अगले महीने वो चला जायेगा , 
कहता हैं , मौका मिलेगा तो यहाँ आऊंगा , 
वर्ना वही सेटेल हो जाऊंगा. 
अब हम क्या करे? एक ही तो बेटा हैं, 
वो भी दूर चला जायेगा , 
तो हम कैसे रहेंगे ? "
माँ बड़ी शांति से बोली , 
" कोई बात नहीं बेटा, उसको जाने दे. 
तू ऐसा कर, अब हमारे पास आ जा. 
हमें भी सहारा हो जायेगा , 
तेरे पापा को अब कम दिखता हैं, 
तू उनकी आँखे  बन जायेगा , 
मैं भी अब बहुत बूड़ी हो गयी हूँ , 
बहु के साथ मेरा टाइम भी कट जायेगा. 
रही तेरे बेटे की बात, 
धीरज रख ! वो भी एक दिन लौट के  आएगा. " 
बेटे को माँ की बातो से बड़ी तसल्ली हुई, 
सोचा , " माँ, सही तो कह रही हैं, 
जिस मकसद से शहर आया था, 
पूरा तो हो गया था, 
बच्चो को लिए सब कुछ तो कर लिया , 
अब जरा माँ -बाप की सेवा की जाये , 
क्या पता ? इसी तरह राहुल भी एक दिन वापस आ जाये. " 

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