Monday, July 2, 2012

पहला भाग - बिछोह .......


बेटे  ने घर छोड़ते हुए माँ बाप को कहाअच्छा ! अब मैं चलता हूँ , देर हो रही हैं ,
फिर मैं आपको फ़ोन दे के जा रहा हूँ
जब मर्ज़ी हो बात कर लीजियेगा और अगर कोई जरुरी काम पड़ातो मैं जाऊंगा. "
पिता ने कहा , " ठीक हैं बेटाशायद हम तेरे लिए यहाँ वो नहीं कर पाए जो तुझे आज लगता हैं
तेरे बच्चो का भविष्य यहाँ बिगड़ जायेगा, 
तू खूब तरक्की कर और खूब पैसा और नाम कमा
हम तो  बूड़े हो गए हैं , अब इस मिटटी से अलग होने का सवाल ही नहीं होता
बस इतना करना जब कोई बुरी खबर मिलेतो जरुर जाना.  
नहीं तो हम दोनों ने उम्र तो काट ही ली हैं , थोडा जो बची हैं - कट ही जाएगी
मगर तू  अपना ख्याल रखना."
माँ बोली , " ठीक हैं बेटा ! तुझे जो अच्छा लगता हैं , तू कर रहा हैं
फिर तू मुझसे जुदा थोडा हैं
तुझे छींक भी आएगी  परदेश में कभीतो मुझे खबर हो जाएगी
तू मेरा ही तो अंश हैं , मुझे तेरी खबर बिना फ़ोन के भी हो जाएगी
मगर अपना ध्यान रखना , टाइम पर खाना और टाइम पर सोना
पैसो के लिए ही मत भागना
बच्चो को बेमतलब डांटना मतबहु का भी हमारी ख्याल रखना
जा जी ले अपनी ज़िन्दगी , यहाँ क्या रखा हैंसिर्फ हमारे प्यार के सिवाय
सिर्फ प्यार से तो ज़िन्दगी नहीं चलतीज़िन्दगी में  और भी बहुत कुछ चाहिए
शायद हम तुझे कुछ नहीं दे पाएजो अब तू अपने बच्चो को देना चाहता हैं
खुश रहना और कभी कभार हमारी भी सुध ले लेना ."
बेटे , बहु और बच्चो ने माँ बाप के पैर छुए और चल दिए
माँ पल्लू से अपने गीली आँखों को पोछ रही थी
और पिता चुपचाप बच्चो को जाते हुए देख रहा था

(आगे क्या हुआ, अगले भाग में जरुर पढियेगा... )

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