वो लोग कितने गजब थे,
हमारे आज के लिए जो शहीद हुए थे,
उन्होंने अपने आज को न देखा,
आने वाला कल अच्छा हो , कुर्बान हुए थे.
आजादी की खातिर जिन्होंने ,
तन मन धन न्योछावर कर दिया था,
आजाद हवा में सांस ले सके हमारे आने वाले बच्चे,
सब कुछ झोंक दिया था.
बदले में हमने उनके सपनो के साथ क्या किया ?
आजाद हम उनकी कुर्बानियों से हुए ,
हम उसे हमारा हक़ मान लिया,
उनके सपनो के भारत को हमने क्या से क्या बना दिया?
सत्ता कहने को हमारे हाथ आ गयी मगर,
हमने ही आजादी का गला घोंट दिया.
चंद लोगो के हाथो में सियासत चली गयी ,
असली जनता - फिर भी भूखी प्यासी रह गयी.
कुर्बानियों का हमने क्या सिला दिया,
अपने देश का पैसा कुछ लोगो ने स्विस बैंक में जमा करा लिया.
किसान ख़ुदकुशी करते रहे और सूदखोरों का घर मालामाल हुआ.
तरक्की बहुत की हमने , आम आदमी महंगाई से कभी उभर नहीं पाया.
रोटी कपडा और मकान के चक्कर में , उसको कभी आजादी का मतलब समझ नहीं आया.
उसके लिए तो शासको का सिर्फ रंग बदला,
पहले गोरो का राज था, अब उनकी चमड़ी का रंग थोडा काला हुआ.
पहले विदेशी का हवाला देते थे, अब अपने बीच से ही लूटेरो का राज हुआ.
क्या सोचते होंगे वो शहीद अब ऊपर आसमान से ,
उनके बलिदान का अर्थ जाया हो गया.
तुम्हे नमन शहीदों , शायद हम आजादी का अर्थ कुछ और समझ बैठे हैं.
लम्बे अरसे की गुलाम का दंश शायद हम भूल चुके हैं.
जो शायद आपने सहा , वो हम अनुमान भी न लगा पाएंगे ,
अपने भीतर ही पैदा हुए इन अंग्रेजो को हम ही दूर भगायेंगे.
( १५ अगस्त की पूर्व संध्या पर शहीदों को श्रदांजली )
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