कभी यूँ ही यादो के गलियारों में घूमना अच्छा लगता हैं,
वो छोटी छोटी बाते यादे करना अच्छा लगता हैं,
वो बचपन के अल्हड और मौजमस्ती के दिन याद करना ,
दिमाग को कितना ताजा कर जाता हैं,
वो स्लेट पर कलम से अ , आ सीखना ,
वो पहाड़े रट रट के सुनाना, गलती होने पर मास्टर जी के बेत खाना,
वो अकेला स्कूल जाना और आना ,
आते समय दोस्तों से किसी बात पर शर्त लगा कर झगड़ना ,
कभी भी स्कूल बंक करके दुसरे दिन उलजलूल बहाने बनाना ,
दिन भर क्रिकेट खेलने के चक्कर में खाना पीना सब भूलना,
रात को माता जी से फिर लेक्चर सुनना ,
वो टीचरों का अलग अलग नामकरण करना ,
बरसातो में खुद को भिगोना ,
वो नए नए सपने देखना , दुनिया को अपनी मुट्ठी में समझना ,
पापा मम्मी से किसी न किसी बहाने से पॉकेट मनी मांगना ,
कोई सामान मंगाए तो उसमे से चुंगी मारना,
सच में यादो के पिटारे में कितना कुछ भरा पड़ा है हमारे ,
कभी फुर्सत में सोच के देखना ,
चेहरे पर एक लालिमा से आएगी और दिल बड़ा हल्का से लगेगा ,
इस भागम भाग ज़िन्दगी में "वो पल" ठंडी हवा का झोंका सा अहसास हैं,
आप तरोताजा हो जायेंगे और यादो की गठरी भी फिर से रवां हो जाएगी .
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