बादलो के अपने मखमली घर को छोड़ ,
जब वो अपने दुसरे घर जमीन को चली ,
तो उससे बहुत समझाया गया ,
तू छोड़ के चली जाएगी तो तेरा सुकून चला जायेगा,
इतना आराम जो यहाँ हैं सब ख़त्म हो जायेगा.
तू मिटटी में मिल जाएगी और तेरा वजूद मिट जायेगा.
नन्ही बूँद ने उत्तर दिया ,
" मैं तो जन्मी ही धरती की प्यास बुझाने हूँ,
मुझे रोकने से क्या फायदा ,
अंतत : मुझे एक दिन ये सुकून भरा घर छोड़ना ही हैं,
फिर मैं उस समय की धरती के क्यूँ काम न आऊँ ,
जब उसको मेरी सबसे बड़ी जरुरत हैं.
उसकी प्यास भी बुझ जाएगी और मेरा जीवन भी काम आ जायेगा.
वर्ना किसी दिन जब उससे जरुरत ही नहीं होगी ,
मैं बाड़ के पानी का हिस्सा बन जाउंगी और फिर से किसी नदी नाले में मिलकर ,
फिर यही जीवन पाऊंगी.
आज धरती सूखी हैं, मुझे न रोको ,
मिटटी में मिलकर तर जाउंगी ,
किसी फूल के पौंधे की प्यास बुझा कर,
फूलो की तरह महक नया जीवन पा जाउंगी "
अचानक बादलो में गर्जना हुई और वो नन्ही सी बूँद,
ऊपर बादलो के घर को छोड़ , हवायो के रथ पर सवार होकर,
धरती में समां गयी ,
जिस जगह वो बिखर कर चूर हुई, वही एक झुलसा हुआ गुलाब के पौंधा था,
कुछ समय बाद वही एक गुलाब का फूल खिल रहा था.
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