सन्डे को थोडा फुर्सत थी, तो थोडा अलसा रहा था.
पता नहीं कहाँ से ये ख्याल आया ,
जैसे मेरी ज़िन्दगी मेरे सामने आ गयी हो ,
और पूछ रही हो ," बता, मेरा हिसाब किताब ,
इतने साल जो तुने मेरे गवां दिए हैं ,
क्या क्या किया बता तू आज."
शरीर में सिहरन सी मच गयी ,
और बोला, " सन्डे हैं आज ,
थोडा सुस्ता लूं मैं ,
कल करेंगे बात "
ज़िन्दगी बोली , " बाकी दिन तो बहुत बहाने है तेरे पास,
कभी इसका टेंसन और कभी गिनाएगा और बहुत सारे कारण,
फिर कह देगा बहुत सारे काम हैं मेरे पास आज "
मैं सन्डे को जाया नहीं करना चाहता था, और मुझे लगा आज तो छोड़ेंगी नहीं ,
और उपर से हकीकत तो ये , " उसको बताने के लिए कुछ नहीं हैं मेरे पास"
आधी उम्र तो काट दी हैं मैंने इसकी , अब आधी के लिए भी कोई ऐसा योजना नहीं हैं मेरे पास.
सोचा इससे कट ही लेता हूँ , आवाज लगायी अपनी बिटिया को .
और उसके साथ यूँ ही खेलने लग गया.
ज़िन्दगी बेचारी मुझे घूरते हुए " फिर आउंगी " कहते हुए ओझल हो गयी.
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