ऑफिस से निकला और नॉएडा सिटी सेंटर पहुंचा ,
देखा चेकिंग के लिए ही लम्बी लाइन लगी थी,
१५ मिनट में चेकिंग के बाद प्लेटफोर्म पर पहुंचा ,
लम्बी लम्बी लाइन देख कर साँसे फूल रही थी,
मेट्रो अभी आई भी नहीं थी, लोगो में लाइन में आगे लगने की होड़ सी लगी थी,
जैसे ही मेट्रो आई , लोगो को एक दुसरे को धक्का मार सीट घेर की प्रतियोगिता चल गयी थी,
जिन्हें सीट मिल गयी उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी ,
और जो खड़े रह गए , वो हाथ मल रह थे.
मन ही मन बैठे हुए लोगो से जल रहे थे,
ये हाल पहले स्टेशन का था, जहाँ से मेट्रो चली थी.
धीरे धीरे मेट्रो आगे सरकती गयी और लोगो को अब सीट तो छोड़ खड़े रहने की जगह नहीं बची थी.
फिर आया राजीव चौक , मेट्रो के सबसे संघर्ष वाली जगह.
आधे उतरे और जो नहीं उतर पाया, चड़ने वालो ने उसे फिर से अन्दर कर दिया.
वो चिल्लाता रहा , मगर किसी को परवाह कहाँ.
इतने मैं एक सज्जन का पांव दुसरे के पाँव के ऊपर चढ़ गया,
गाली गलौज का जो दौर शुरू हुआ,
वो एक के स्टेशन आने पर ही रुका.
जैसे तैसे मैं अपने स्टेशन कीर्ति नगर उतरा.
लगा जैसे आज मैंने कितना संघर्ष किया.
खुद को फिर तैयार किया , क्यूंकि अब दूसरी मेट्रो कीर्ति नगर से मुंडका पकड़नी थी,
जंग वही फिर से लड़नी थी.
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