Monday, November 19, 2012

माँ आज भी कहती हैं ,

माँ  आज भी कहती हैं , 
" पैसे के पीछे ही मत भाग, अपनी सेहत का ख्याल पहले रख, 
  नहीं चाहिए तेरे पैसे जो तू अपनी सेहत बिगाड़ कर कमाए, 
  जितने मिले उतने से ही काम चला , 
  अगर मन नहीं लग रहा तो घर आ जा .
  मेरी आँखों के सामने  रहेगा और मुझे कुछ नहीं चाहिए 
  माना की तू दुनिया की नजर में बड़ा आदमी हैं 
  मगर मेरे लिए तो तू आज भी बच्चा हैं 
  जो हर बात पर मम्मी मम्मी करता हैं   " 
नमन हैं हर माँ को  जिसका कलेजा हर वक़्त अपने बच्चो के लिए धडकता हैं। 
वो धरती पर इश्वर का रूप हैं , खुदा तो हर वक्त साथ नहीं रह सकता , 
मगर हर माँ को अपने रूप में भेजता हैं . 
माँ के गुणगान करने के लिए शब्द नहीं मिलते , 
वर्ना मैं सबसे लम्बी किताब लिख लेता , 
" माँ " शब्द ही इतना व्यापक हैं , 
कहाँ से शुरू करे और कहाँ ख़त्म - समझ नहीं आता। 

Friday, November 9, 2012

चलो , इस दिवाली कुछ नया करते हैं ..


जलते दीये को देखकर हर बार ख्याल आता हैं , 
क्यूँ ये दीया अपने आप को जलाता हैं , 
फिर दिमाग झकझोरता हैं , 
अगर दीया अपने आप को जलाएगा नहीं तो , 
अंधेरे से मुकाबला कैसे करेगा , 
वो तो जन्मा ही इसी लिए हैं ,
उसको उस जलन में भी इस बात का संतोष रहता होगा, 
की वो जिस काम के लिए जन्मा हैं उसको कितने अच्छे तरीके से कर रहा है,
अपने को जला कर दुसरो को रौशनी दिखाता हैं, 
चलो इस दिवाली हम भी इससे कुछ सीखते हैं , 
किसी को अपने प्रकाश से हम भी रोशन करते हैं ,
किसी की चेहरे पर ख़ुशी आये , कुछ काम करते हैं
हर रोज़ अपने लिए जीते हैं , कुछ पल दुसरो के लिए भी जीते हैं 
खुशियों में तो शरीक होते ही है , किसी के गम को साझा करते हैं 
चलो , इस दिवाली कुछ तो नया करते हैं। 

Tuesday, November 6, 2012

वक़्त .........

हालात कितने ही बद्तर क्यों न हो , 
उन्हें सुधरना ही हैं , 
हालात कितने ही अच्छे क्यूँ न हो, 
उनको भी बदलना ही हैं . 
वक़्त का मरहम हैं ही कुछ ऐसा , 
की सब कुछ एक सा कभी नहीं रहता, 
राजा को रंक और रंक को राजा , 
कब होना हैं सब इसी की गर्त में हैं , 
इसकी गति स्थिर हैं न ये तेज होती हैं न मंद , 
परेशानी में हमें लगता हैं कितनी सुस्त रफ़्तार हैं इसकी , 
ख़ुशी के पलो में सरपट भागने की आदत हैं इसकी , 
जो इसको समझ गया , 
वो जिंदगी जी जाता हैं और जो इसकी चाल न समझ पाया , 
वो ज़िन्दगी भर उलझा रहता हैं . 
न ये खरीदा जा सकता हैं और न ये इकठ्ठा किया जा सकता हैं , 
न कोई इसको रोक सकता हैं , 
ये तो मस्तमौला हैं बिना किसी की परवाह किये बस फिसलता जाता हैं।