हालात कितने ही बद्तर क्यों न हो ,
उन्हें सुधरना ही हैं ,
हालात कितने ही अच्छे क्यूँ न हो,
उनको भी बदलना ही हैं .
वक़्त का मरहम हैं ही कुछ ऐसा ,
की सब कुछ एक सा कभी नहीं रहता,
राजा को रंक और रंक को राजा ,
कब होना हैं सब इसी की गर्त में हैं ,
इसकी गति स्थिर हैं न ये तेज होती हैं न मंद ,
परेशानी में हमें लगता हैं कितनी सुस्त रफ़्तार हैं इसकी ,
ख़ुशी के पलो में सरपट भागने की आदत हैं इसकी ,
जो इसको समझ गया ,
वो जिंदगी जी जाता हैं और जो इसकी चाल न समझ पाया ,
वो ज़िन्दगी भर उलझा रहता हैं .
न ये खरीदा जा सकता हैं और न ये इकठ्ठा किया जा सकता हैं ,
न कोई इसको रोक सकता हैं ,
ये तो मस्तमौला हैं बिना किसी की परवाह किये बस फिसलता जाता हैं।
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