Tuesday, November 6, 2012

वक़्त .........

हालात कितने ही बद्तर क्यों न हो , 
उन्हें सुधरना ही हैं , 
हालात कितने ही अच्छे क्यूँ न हो, 
उनको भी बदलना ही हैं . 
वक़्त का मरहम हैं ही कुछ ऐसा , 
की सब कुछ एक सा कभी नहीं रहता, 
राजा को रंक और रंक को राजा , 
कब होना हैं सब इसी की गर्त में हैं , 
इसकी गति स्थिर हैं न ये तेज होती हैं न मंद , 
परेशानी में हमें लगता हैं कितनी सुस्त रफ़्तार हैं इसकी , 
ख़ुशी के पलो में सरपट भागने की आदत हैं इसकी , 
जो इसको समझ गया , 
वो जिंदगी जी जाता हैं और जो इसकी चाल न समझ पाया , 
वो ज़िन्दगी भर उलझा रहता हैं . 
न ये खरीदा जा सकता हैं और न ये इकठ्ठा किया जा सकता हैं , 
न कोई इसको रोक सकता हैं , 
ये तो मस्तमौला हैं बिना किसी की परवाह किये बस फिसलता जाता हैं। 

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