आजकल चीजो और हालातो को देख परख रहा हूँ
की किसी विषय पर कुछ पंक्तिया लिखू ,
विषयो का भटकाव इतना ज्यादा हो गया हैं शायद ,
या मै ही एक विषय चुनने में असमर्थ हो रहा हूँ,
जिधर नजर दौड़ाता हूँ , विषय बहुत मिल जाते हैं ,
दो चार शब्दों को पिरोने का प्रयास भी करता हूँ ,
मगर चंद पंक्तियों के बाद दिमाग बोझिल सा हो जाता हैं ,
सोचता हैं हजारो पंक्तियों के विषय को तू , क्यूँ कुछ पंक्तियों में कैद करना चाहता हैं ,
बस असमंजस और कशमकश जारी हैं ,
मेरे और विषयो के बीच ,
यकीन हैं किसी न किसी दिन फिर से लेकर बैठूँगा ,
अपने दिमाग और कलम के बीच की जंग को ,
मै ही शांत करूँगा ............और तब शायद कुछ सार्थक लिखूंगा ,
अपने दिमाग और विषयो की अभिव्यक्ति को अपने शब्दों का जामा पहनाऊंगा ......
दिल से लिखी ..सुन्दर रचना
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