कभी कभार जब अपने जीवन कारवाँ को पीछे पलट के देखता हूँ,
तो अपने पीछे अनगिनत लोगो का हुजूम पाता हूँ ,
वो पापा का किसी बात पर डाँटना और अगले ही पल दुलारना ,
वो मम्मी का हर बात पर फिक्र करना ,
वो बचपन का मेरा दोस्त जिसके कंधो पर मैं हाथ डालकर स्कूल जाता था,
वो मेरे मास्टर जी जिनकी बेतों की मार खाकर मै उनको हिटलर कहता था,
वो दादी माँ जिनको मैं शैतानी का बाप लगता था,
वो दादा जी जिनके कंधो पर बैठकर उनके बाल खीचता था,
वो स्कूल के प्रिंसिपल जिनके जैसा मै बनना चाहता था,
वो मेरा भाई जिसे अपने से ज्यादा भरोसा मुझ पर था,
वो मेरी बहन जिसे दुनिया में मुझसे बेहतर कोई नहीं दिखता था,
वो मेरे कॉलेज के दोस्त जिनके साथ भविष्य की हर रोज़ नयी कल्पना करता था,
वो मेरी बीवी जिसने मुझे अपना जीवन समर्पित किया ,
वो मेरी बेटी जिसने मुझे फिर से मुझे बचपन को याद दिलाया ,
वो मेरे ऑफिस के दोस्त जिन्होंने मुझे काम करना सिखाया ,
और भी न जाने कितने लोगों ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया,
मैंने तो शायद ही इनके लिए कुछ किया हो , मगर इन सब ने मुझे बनाया,
अपने जीवन के कारवां को कभी कभी याद कीजिये ,
बढ़ा सुकून मिलता हैं और " मैं , सिर्फ मैं " का भ्रम दूर होता हैं ,
अभी तो कारवां ने कुछ ही मीलो का सफ़र तय किया हैं ,
बहुत दूर और जाना हैं ,
न जाने कितने लोग और जुडेगे मेरे जीवन कारवां में ,
क्यूंकि मेरे जीवन का कारवां जारी हैं ...........
No comments:
Post a Comment