मै अपनी
बिटिया के साथ जा रहा था
,
रास्ते में एक भिखारी मिला ,
वो मुझसे कुछ रुपये मांग रहा था,
मै कई जगह ऐसे भिखारियों से टकराता हूँ ,
उसको " बाबा हमें माफ़ करो , आगे बढ़ो "
कहता हुआ निकला जा रहा था,
चंद कदम आगे भी न बढ़ा था,
मेरी चार साल की बिटिया ने मुझे पीछे खीचा और कहा ,
" पापा , आपने उन बूढ़े अंकल को पैसे क्यूँ नहीं दिए,
वो अपने खाने के लिए ही तो पैसे मांग रहे थे ,
उनके पास पैसे नहीं होंगे , आप दे देते ,
चलो , उनको कुछ पैसे दो "
मैंने कहा
," बेटा , मेरे पास पैसे नहीं हैं
"
तो वह तपाक से बोली, " पापा, झूठ नहीं बोलते , आपके पर्स में पैसे तो हैं"
मैंने कहा , " बेटे , पैसे तो हैं मगर खुले पैसे नहीं हैं बाबा को देने के लिये "
तो वह बोली ," तो खुले करवा लो फिर दे दो "
मैं उसको अनसुना करके आगे बढ़ना लगा,
वो रोने लगी , " पापा , आपने अंकल को पैसे क्यूँ नहीं दिए ?
अब वो क्या खायेंगे , कहाँ जायेंगे ?"
मैंने बिटिया की आँखों से बहता पानी देखा और
पर्स निकाल कर दस रुपये का नोट निकाल कर बाबा को आवाज देकर बुलाया ,
बाबा को पैसे देकर थोडा आगे बढ़ा तो बिटिया को फिर से बढ़ा खुश पाया ,
अब वो उस घटना को भूल चुकी थी,
मगर मेरे सामने सबको और इंसानियत के कई सवाल छोड़ गयी थी ,
मैंने उसे गोद में उठाया और इधर उधर की बातो में फंसाया,
वो भोला सा मन फिर से चहकने लगा ,
और मै घबरा रहा था अब कही और कोई मांगने वाला न मिल जाये,
जिससे मेरी बेटी फिर मेरे पीछे पड़ जाये
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