कंक्रीट
के इस जंगल
में जिसे शहर कहते हैं ! बड़ा डर लगता
हैं !!
अपनी
दहलीज के परे
कौन रहता हैं ! पता नहीं चलता हैं !!
अपनी
ही कॉलोनी में कोई ! अपनी जान पहचान का नहीं
मिलता हैं !!
तिरछी
निगाहो से देखता
हैं हर कोई
यहाँ ! अपनी सीढ़ियाँ चढ़ते ही डर
लगता हैं !!
कहते
तो हैं सब यहाँ
की पढ़े
लिखे और समझदार
लोग रहते हैं ! मगर रोज़ छोटी छोटी बात पर लड़ते
देखा हैं !!
पड़ोसियों को घर
से दूर पार्क में बतियाते देखा हैं ! कंक्रीट की इन दीवारो के पीछे ज़िन्दगी को तड़पते
देखा हैं !!
जरूरतमंद के लिए
दरवाजा पटकते देखा हैं ! अदखाये पिज़्ज़ा बर्गर को कूड़े के ढेर में पाया हैं !!
भाषण देने के लिए
बड़े बड़े मंच बिछते हैं ! अपनी कॉलोनी के पार्क के लिए कुछ करने की सुध किसी को नहीं
हैं !!
अभिभावकों को कहते
सुना हैं ! उस बच्चे के साथ नहीं खेलना हैं !!
खोखली हँसी हँसते
लोगो को देखा हैं ! अपनी जुबान से झट पलटते देखा हैं !!
इस आदमी से मुझे
क्या फायदा हो सकता हैं ! नफे नुकसान से तौलते हुए दोस्ती होते देखा हैं !!
दुःख दर्द साझा
करने की तो बहुत दूर की बात हैं ! ख़ुशी में भी किराये की भीड़ को इकठ्ठा हुए देखा हैं
!!
कंक्रीट
के इस जंगल
में जिसे शहर कहते हैं ! बड़ा डर लगता
हैं !!
अपनी
दहलीज के परे
कौन रहता हैं ! पता नहीं चलता हैं !!
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