Friday, October 7, 2016

बहरूपिये


इधर उधर - यहाँ वहाँ बहरूपिये घूम रहे हैं !
अंदर से कुछ और , बाहर से कुछ और - अपने मौके ढूंढ रहे हैं !!

शेर की खाल का लबादा ओढे बहुत सियार  घूम रहे हैं !
बचा के रखो खुद को , दोस्त बनकर कुछ दुश्मन खंजर लिए घूम रहे हैं !! 

रिश्ते नाते , सच्चाई को ताक पर रख रहे है !
कुछ लोग भरे बाजार चंद रुपयो में ईमान बेच रहे हैं !!

दौर गजब का चल रहा हैं !
नालायकी शबाब पर और लायक बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहे हैं !!

सही रास्ते पर चलने की सीख देने वाला दकियानूसी हैं !
बरगलाने वाले  - शुभचिंतक बन रहे हैं !! 

सच्चे और ईमानदार अभी भी चुपचाप  नेक काम कर रहे हैं !
बहरूपिये ताल ठोककर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं !! 

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