इधर उधर - यहाँ वहाँ बहरूपिये घूम रहे हैं !
अंदर से कुछ और , बाहर से कुछ और - अपने मौके ढूंढ रहे हैं !!
शेर की खाल का लबादा ओढे बहुत सियार घूम रहे हैं !
बचा के रखो खुद को , दोस्त बनकर कुछ दुश्मन खंजर लिए घूम रहे हैं !!
रिश्ते नाते , सच्चाई को ताक पर रख रहे है !
कुछ लोग भरे बाजार चंद रुपयो में ईमान बेच रहे हैं !!
दौर गजब का चल रहा हैं !
नालायकी शबाब पर और लायक बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहे हैं !!
सही रास्ते पर चलने की सीख देने वाला दकियानूसी हैं !
बरगलाने वाले - शुभचिंतक बन रहे हैं !!
सच्चे और ईमानदार अभी भी चुपचाप नेक काम कर रहे हैं !
बहरूपिये ताल ठोककर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं !!
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