जो देखता हूँ , वो लिखता हूँ !
शब्दो को आड़े तिरछे - आगे पीछे पिरोता हूँ !!
जो महसूस होता हैं !
शब्दो के जरिये बयां करता हूँ !!
अपने को कवि नहीं कहता !
फिर भी कविताये लिखने का प्रयास करता हूँ !!
खालिस कवि तो विरला होता हैं !
वो शब्दो को मोती बना कविता को पिरोता हैं !!
कल्पना को अपनी शब्दो में जीवंत करता हैं !
एक एक शब्द से पूरा सार गढ़ता हैं !!
कभी भावनाओ के अतिरेक में बह कर विद्रोही सा लगता हैं !
कभी किसी विषय पर आँखों के कोरे गीली कर देता हैं !!
कवियों का संसार भी अजब हैं !
हर कोई दिल से यायावर और मस्तमौला हैं !!
हर चीज में उन्हें कविता सूझ जाती हैं !
ज़िन्दगी की इस आपाधापी में भी कलम बेबाक चलती हैं !!
No comments:
Post a Comment