Monday, January 2, 2017

खुद की , खुद से ........( 2017 की पहली कविता )

 



क्या हैं ? हम में वो जुनून और वो जज्बा की
हम खुद से मुकाबला करे
रोज़ अपने लिए कुछ पैमाने तय करे औरऔर उन पर खरा  उतरे
अपने लिए खुद नियम बनाये और उन पर अमल करे
क्यूंकि हमें दुसरो की नक़ल नहीं करनी
हमारा तो खुद से मुकाबला हैं
अपने को बेहतर से और बेहतर करने की जंग
हमारे ही भीतर तो हैं। 

हमें हमारी सोच बदलनी होगी
अपने पंखो को परवाज देनी होगी
खुला आसमान हैं ये जहाँ
क्षितिज की तलाश हमें खुद करनी होगी ,
  रुकना होगा , झुकना होगा 
अपने लक्ष्यों तक अपने जूनून से पहुचना होगा ,
 लगेगी थोडा देर भले ही ,
हार ने मानने का जज्बा रखना होगा
हिम्मत  रखनी पड़ेगी दुनिया बदलने की
हर हालात में मुस्कराये ये कलेजा रखना होगा। 

दुनिया हमें पागल कहे तो भी अपना रास्ता खुद चुनना होगा
सफलता और असफलता को बिना ध्यान में रखे
हमें  अविरल बहना होगा,  
भेडचाल में चल के बहुत देख लिया अब
अपने लिए खुद का  मुकम्मल जहाँ बनाना होगा ,
 अपने ज़िन्दगी कारवां को हमें
और बेहतर बनाना होगा। 


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