मेरा देश बड़ी मुश्किल में हैं , इधर जाये या उधर जाये !
बड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ सा हैं !!
विकास की दौड़ में सबसे आगे रहना चाहता है ,
फिर घर की हालात देखकर ठिठक जाता हैं ,
खुशहाल बनने की ललक दिल में हैं ,
किसानों की दशा देखकर सहम जाता हैं ,
बराबरी का हक़ सबको मिले ,
महिलाओ पर होते अत्याचारो से जार जार रोता हैं,
पूरे विश्व में शांति दूत बनना चाहता हैं ,
पड़ोसियों की हरकतों से बार बार जख्म खाता हैं ,
संताने उसकी मुक्कमल जहां बनाये ,
बढ़ती बेरोजगारी - हथोड़े सा वार करता हैं ,
सबको तरक्की के अवसर मिले ,
भ्रस्टाचार और बेईमानी राह में रोड़ा बनता हैं ,
सर्वधर्म समभाव रहे ,
कुछ लोगो को ये अखरता हैं ,
उम्मीद अभी हैं उसे ,
सदियो से वजूद उसका यूँ ही कायम नहीं हैं ,
उठ खड़े होंगे जब ढाई सौ अरब हाथ इक दिन ,
दुनिया में उसके जैसा फिर कोई नहीं हैं।