Saturday, March 25, 2017

किंकर्तव्यविमूढ़

मेरा देश बड़ी  मुश्किल में हैं , इधर जाये या उधर जाये ! 
बड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ सा हैं !! 

विकास की दौड़ में सबसे आगे रहना चाहता है , 
फिर घर की हालात देखकर ठिठक जाता हैं , 

खुशहाल बनने की ललक दिल में हैं , 
किसानों की दशा देखकर सहम जाता हैं , 

बराबरी का हक़ सबको मिले , 
महिलाओ पर होते अत्याचारो से जार जार रोता हैं, 

पूरे विश्व में शांति दूत बनना चाहता हैं , 
पड़ोसियों की हरकतों से बार बार जख्म खाता हैं , 

संताने उसकी मुक्कमल जहां बनाये , 
बढ़ती बेरोजगारी - हथोड़े सा वार करता हैं , 

सबको तरक्की के अवसर मिले , 
भ्रस्टाचार और बेईमानी राह में रोड़ा बनता हैं , 

सर्वधर्म समभाव रहे , 
कुछ लोगो को ये अखरता हैं , 

उम्मीद अभी हैं उसे , 
सदियो से वजूद उसका यूँ ही  कायम नहीं  हैं , 

उठ खड़े होंगे जब ढाई सौ अरब हाथ इक दिन , 
दुनिया में उसके जैसा फिर कोई नहीं हैं।  

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