उतरे है जीवन समर में ,
तो डरना क्या ,
दिया है सिर ओखली में ,
तो मूसल से डरना क्या ,
कर्मो का परिणाम है वर्तमान ,
भविष्य के लिए घबराना क्या ,
मुकद्दर खुद लिखना होता है ,
दुसरो पर दोष मढ़ना क्या ,
जिद्द हो , जूनून हो
तो क्या पर्वत , क्या आसमान
क्या सागर की गहराइयाँ
बैठे रहे तो फिर ,
सपाट रास्ते में भी खाइयाँ।
हौंसला और विश्वास ,
और कर्म हो अगर साथ ,
भाग्य का बनना और बिगड़ना क्या ,
पुरषार्थ के आगे बेदम है ,
सब बाधाएँ और संकट ,
कर्मतप से पिघल जाये लोहा भी ,
जयगान जीवन का।
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