Saturday, October 12, 2019

जीवन समर


उतरे है जीवन समर में , 
तो डरना क्या , 
दिया है सिर ओखली में , 
तो मूसल से डरना क्या , 
कर्मो का परिणाम है वर्तमान , 
भविष्य के लिए घबराना क्या , 
मुकद्दर खुद लिखना होता है , 
दुसरो पर दोष मढ़ना क्या ,
जिद्द हो , जूनून हो 
तो क्या पर्वत , क्या आसमान 
क्या सागर की गहराइयाँ 
बैठे रहे तो फिर , 
सपाट रास्ते में भी खाइयाँ।  

हौंसला और विश्वास , 
और कर्म हो अगर साथ , 
भाग्य का बनना और बिगड़ना क्या , 
पुरषार्थ के आगे बेदम है , 
सब बाधाएँ और संकट , 
कर्मतप से पिघल जाये लोहा भी , 
जयगान जीवन का।  

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