स्त्री प्रेम नहीं करती ,
सच है , स्त्री प्रेम नहीं करती ,
प्रेम उसको समझ नहीं आता ,
क्यूंकि प्रेम में जटिलता बहुत है ,
जो उसको सुहाता नहीं ,
फिर ,
स्त्री जब प्रेम में पड़ती है तो ,
वह "समर्पण " करती है ,
वह खुद को समर्पित करती है ,
अपने प्रेमी को ,
मगर समर्पण करने से पहले ,
वह परखती है ,
जांचती है ,
परीक्षा लेती है ,
और जब उसे लगता है ,
उसका मन गवाही देता है ,
तब वह प्रेम नहीं ,
"समर्पण " कर देती है ,
सब कुछ ,
एकाकार होने के लिए ,
अपने प्रेमी में बसने के लिए ,
इसीलिए वह ,
"समर्पण " करने से पहले ,
वक्त लेती है,
"हाँ " कहने से पहले ,
वक्त लेती है ,
प्रेम उसके लिए ,
सिर्फ प्रेम नहीं होता ,
उसका संसार होता है ,
जहाँ उसकी मुस्कान ,
उसके दर्द , उसके आँसू
सब होते है।