ठूँठ को देखकर ,
दया भी आयी और गर्व भी हुआ ,
सब कुछ दे दिया था उसने ,
फल , शाखाएं , छाया ,
मगर शायद और भी कुछ चाहिये था उससे ,
तना भी काट ले गया कोई ,
अब भी वो खड़ा है ,
कोई आएगा ,
तो ले जाये ,
इस अवशेष को भी ,
ताकि फिर शायद ,
उसके रिक्त स्थान पर ,
फिर उगे कोई नन्हा पौधा ,
पेड़ बन सके ,
या फिर ,
कोई सड़क बन सके ,
वो कोई बाधा न रहे ,
अब वो अतीत को याद ,
नहीं करना चाहता ,
क्यूंकि शायद अब नियति ,
उसकी यही थी,
बस उसका ये संतोष ,
उसकी पूँजी है ,
वो हर तरह से काम आया ,
नन्हे पौधे से लेकर ,
अंत तक ,
जितना हो सकता था - दिया ही ,
लिया शायद कुछ नहीं ,
सिवाय एक स्थान के ,
जहाँ वो खड़ा रहा सीना ताने ,
वर्षो वर्षो तक।
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