डूबते सूरज
के साथ
जैसे ,
एक जीवन
पूरा हो
जाता है
,
तेरी रची
महिमा
के आगे
,
सिर मेरा
एक बार
फिर झुक
जाता है
,
फिर एक
दिन का
जीवन देने
का तेरा
शुक्रिया ,
रात को
फिर अर्ध
मृत्यु का
आगोश छा
जाता है
,
पहली किरण
के साथ
जब आँख
खुलती है
,
तुझ पर
विश्वास और
अटल हो
जाता है।
फिर उम्मीदें , सपने
जग जाते
है ,
नवसंचार सामर्थ्य का नस नस में दौड़ जाता है ,
कदम खुद
बखुद निकल
पड़ते है
,
रात होने
से पहले
जैसे सब
कुछ समेट
लेना चाहता
है,
हर भाव
से जैसे
जीवन गुजरता
है ,
रोज़ , एक
जीवन का
आरम्भ और
अंत हो
जाता है।
No comments:
Post a Comment