Monday, August 17, 2020

प्रकृति

                                                      क्या कभी आपने देखा है किसी पहाड़ की ओट से ,

उगते सूरज को ?

महसूस किया किरणों की मखमली ऊष्मा को ?

क्या कभी आपने देखा है समंदर में डूबते सूरज को ?

जैसे नहा रहा हो ,

और महसूस किया है धीरे धीरे बढ़ती शीतलता को ?

क्या कभी गुजरे है किसी जंगल से ?

सुनी है आवाज हवा और पेड़ो की ?

जैसे आपस में बतियाते हो ,

किसी बहते नदी में पैर डाले है ,

वो छुवन क्या अब भी ताजा है ?

क्या कभी भागे हो उस रंगबिरंगी तितली के पीछे ?

जो तुम्हारी आहट से उड़कर भागी है ,

क्या भीगे हो कभी बारिश की बूँदो से ?

क्या कभी हाथ फैलाकर अपने चेहरे को उठाकर ?

महसूस किया है बूँदो के चुम्बन को ,

क्या कभी कोई फल सीधा पेड़ से तोड़कर खाया है  ?

और महसूस किया है उस डाली के कम होते वजन को ,

उसको फिर थोड़ा ऊपर उठते  हँसते हुए ,

कभी महसूस की है मिटटी की वो सौंधी सुगंध ?

जब बारिश की पहली बूँद गिरी उसपर ,

क्या साक्षी बने हो किसी बीज के ?

नवांकुर फूटने से पौधा बनने तक,

क्या देखा है किसी चिड़िया का घौंसला ?

एक एक तिनके से गुँथा हुआ कितना सुन्दर ,

क्या कभी चढ़े हो गाँव के उस टीले पर ?

और आवाज लगायी हो किसी को जी भर कर ,

क्या देखी है आपने बादलो की आसमाँ में होड़?

और उनसे छनकर आती जरा सी धूप। 

 

जितने "हाँ " उतना प्रकृति के नजदीक तुम ,

जितने  "ना " इत्तु सा प्रकृति के करीब तुम। 

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