मुझे पता है मेरी कवितायें ,
व्याकरण के नियमों पर
खरी नहीं उतरती ,
साहित्य के मापदंडो पर
कही नहीं ठहरती ,
न कोई गूढ़ रहस्य उजागर
करती है ,
मगर फिर भी मैं लिखता
रहता हूँ,
बेतरीब, लिखना मुझे अच्छा
लगता है,
एक अधूरापन , एक खालीपन
कुछ कमियाँ जैसा मेरी कविताओं में झलकता है ,
वैसा ही तो जीवन भी होता
है ,
सब कुछ पूर्ण हो जाता
तो ,
फिर क्या कविता और क्या
जीवन ,
पूर्णता के बाद फिर क्या
बचता है।