Friday, February 4, 2022

बिसात

 

लिखता हूँ, मिटाता हूँ ,

हर्फ़ -दर -हर्फ़ जोड़ता हूँ ,

ज्वार जज्बातों का उतरे ,

कागज़ काले करता हूँ। 

 

लिखने को यूँ तो बहुत है ,

विषयों की कोई कमी नहीं है ,

हर बार, मगर , दिल को छलता हूँ ,

हाँ , सच लिखने से डरता हूँ। 

 

मायूसियाँ , दर्द और दुःख बहुत है ,

उसकी बयानगी से क्या फायदा ,

गढ़ता हूँ इक नया शब्दजाल ,

यही मेरे पास , इक उम्मीद देता हूँ। 

 

सबका अपना -अपना संघर्ष हैं ,

उम्मीदों का एक पहाड़ ,

जगा रहें पथ पर, इक विश्वास ,

शब्दों का मरहम देता हूँ। 

 

वक्त की बिसात है , हम सब मोहरे ,

परिस्थितयों का मोहताज नहीं ,

जो ,जहाँ , जैसा मिले ,

स्वीकार कर , आगे बढ़ता हूँ। 

1 comment: