लिखता हूँ, मिटाता हूँ ,
हर्फ़ -दर -हर्फ़ जोड़ता हूँ ,
ज्वार जज्बातों का उतरे ,
कागज़ काले करता हूँ।
लिखने को यूँ तो बहुत है ,
विषयों की कोई कमी नहीं है ,
हर बार, मगर , दिल को छलता हूँ ,
हाँ , सच लिखने से डरता हूँ।
मायूसियाँ , दर्द और दुःख बहुत है ,
उसकी बयानगी से क्या फायदा ,
गढ़ता हूँ इक नया शब्दजाल ,
यही मेरे पास , इक उम्मीद देता हूँ।
सबका अपना -अपना संघर्ष हैं ,
उम्मीदों का एक पहाड़ ,
जगा रहें पथ पर, इक विश्वास ,
शब्दों का मरहम देता हूँ।
वक्त की बिसात है , हम सब मोहरे ,
परिस्थितयों का मोहताज नहीं ,
जो ,जहाँ , जैसा मिले ,
स्वीकार कर , आगे बढ़ता हूँ।
Excellent expression
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