कुछ सनक ,
कुछ महत्वाकांक्षायें
धकेल देती है ,
मानवता को ,
युद्ध की तरफ ,
और कुछ गिद्ध ,
ताक में रहते है ,
अपना फायदा ,
सोचकर ,
हारने वाला ,
पछताता है ,
और जीतने वाला ,
सोचता है ,
क्या मिला उसे ,
एक भूमि का टुकड़ा छोड़कर ,
युद्ध की परिणीति ,
शोक से ही होती है ,
दोनों तरफ ,
हुक्मरान पीठ ठोकते ,
टीस जनता पर,
जो चाहती रही हमेशा ,
गुजर जाये उम्र ,
शांति और सुकून पर।
रौंद दिये जाते है ,
घरौंदे ,
खेत -खलिहान ,
रक्त बिखर जाता है ,
सरेआम सड़क पर ,
बिखर जाती है मानवता ,
दिल के टुकड़े ,
बिखर जाते है इधर -उधर ,
मिटा दिए जाते है ,
हर निशाँ इंसानियत के ,
कुचल जाती है भावनाएँ ,
लोहे के पहियों पर ,
बारूद बिखर जाता है ,
मिट्टी पर ,
जो उगलती थी ,
अनाज -लहलहा कर ,
कितने सपने चकनाचूर ,
कितनी औलादें अनाथ ,
कितनी कीमत चुकाओगे ,
सिर्फ एक युद्ध लड़कर।
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