नित बुहारती वो पथ ,
न जाने कब राम आ जायेंगे ,
चुन -चुन कर कन्दमूल ,
मेरे राम खायेंगे ,
सावन पर सावन बीते ,
कमर झुक सी गयी श्रमणा की ,
थका नहीं विश्वास मगर ,
गुरु की बात गाँठ बाँधी ,
आयेंगे , आयेंगे ,
मेरे राम आयेंगे ,
पथ पर नित फूल बिछाती ,
दर्शन को प्यासी वो ,
राम -राम ही भजती ,
इक दिन फिर वो ,
चमत्कार हो ही गया ,
जब देखी दो युवकों की परछाई ,
खुल गए भाग्य भीलनी के ,
रघुकुल तिलक सामने पाई ,
जन्म -जन्म की आस ,
देखो कैसे पूर्ण होने को आई ,
खुद चलकर राम आश्रम पधारे ,
कभी राम का मुख देखती ,
कभी बेरों की टोकरी ,
आँसू टप -टप गिरे आँखों से ,
इस धैर्य और प्रतीक्षा की ,
खुद समय दे रहा था गवाही ,
भाव -विह्वल शबरी ,
देख राम निहाल हो गयी ,
आधे बेर खिलाये राम को ,
आधे बेर जमीन पर गिराई ,
अराध्य और भक्ति के ,
अदभुत मिलन पर प्रकृति मुस्काई ,
लाख -लाख आशीष दे ,
शबरी ने देखो -गति पाई ,
धैर्य जीता , प्रतीक्षा जीती ,
भगवान को कुटिया तक खींच लायी।