Tuesday, November 29, 2022

शबरी : धैर्य और प्रतीक्षा

  

नित बुहारती वो पथ ,

न जाने कब राम आ जायेंगे ,

चुन -चुन कर कन्दमूल ,

मेरे राम खायेंगे ,

सावन पर सावन बीते ,

कमर झुक सी गयी श्रमणा की ,

थका नहीं विश्वास मगर ,

गुरु की बात गाँठ बाँधी ,

आयेंगे , आयेंगे ,

मेरे राम आयेंगे ,

पथ पर नित फूल बिछाती ,

दर्शन को प्यासी वो ,

राम -राम ही भजती ,

इक दिन फिर वो ,

चमत्कार हो ही गया ,

जब देखी दो युवकों की परछाई ,

खुल गए भाग्य भीलनी के ,

रघुकुल तिलक सामने पाई ,

जन्म -जन्म की आस ,

देखो कैसे पूर्ण होने को आई ,

खुद चलकर राम आश्रम पधारे ,

कभी राम का मुख देखती ,

कभी बेरों की टोकरी ,

आँसू टप -टप गिरे आँखों से ,

इस धैर्य और प्रतीक्षा  की ,

खुद समय दे रहा था गवाही ,

भाव -विह्वल शबरी ,

देख राम निहाल हो गयी ,

आधे बेर खिलाये राम को ,

आधे बेर जमीन पर गिराई ,

अराध्य और भक्ति के ,

अदभुत मिलन पर प्रकृति मुस्काई ,

लाख -लाख आशीष दे ,

शबरी ने देखो -गति पाई ,

धैर्य जीता , प्रतीक्षा जीती ,

भगवान को कुटिया तक खींच लायी।

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