अतीत और भविष्य के ,
मध्य एक संधिबिंदु आज पर ,
हतप्रभ सा मैं खड़ा हूँ ,
आश्चर्य ये है न अतीत पर ,
और न भविष्य पर ,
मेरा कोई नियंत्रण ,
मैं दोनों के बारे में ही ,
अपने आज में ,
सोचता रहता हूँ।
आज को अभी ही ,
बेहतर किया जा सकता है ,
भूत -भविष्य से निकलकर ,
जीया जा सकता है ,
मगर अक्सर ये नहीं होता ,
और इस “क्यों “ का ,
उत्तर नहीं होता मेरे पास।
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