गरजा दुर्योधन ,
" पाँच ग्राम तो क्या ?
सुई की नोक के बराबर जमीन नहीं दूँगा ,
जो करना है , कर लो केशव ,
तनिक भी अब अपने फ़ैसले से नहीं हटूँगा। "
शांतिदूत कृष्ण बोले ,
"विचार कर ले दुर्योधन ,
इस निर्णय पर अब सब कुछ निर्भर होगा ,
कुरुवंश का भविष्य अब इसी पर तय होगा ,
हठ छोड़ , संयम दिखा ,
आज अपना बड़प्पन दिखा ,
देख , कोई कुरु तुझसे सहमत नहीं है ,
बालहठ छोड़ , शांति अपना। "
भोंहे तन गयी , आँखे हुई लाल ,
विवेक मर गया दुर्योधन का ,
बोला शब्द विकराल ,
" दुःशासन , बाँध लो इस दूत को ,
यही इस सबका मूल हैं
,
रणछोड़ यह , ग्वाला है ,
ढोंगी , पाखंडी , डरपोक,
पांडवो का रखवाला है। "
"रुक दुर्योधन ,
क्या अनर्थ करने वाला है ,
क्या तू जानता नहीं ,
सामने खड़ा वो सबका काल है। "
भीष्म ने क्रोध से कहा।
" पितामह , आप चाहे तो पाला बदल लो ,
अब आपके बूढ़े प्राणों में जान नहीं है ,
धनुष में वो तान नहीं है ,
इस बाँसुरी बजैये से व्यर्थ डरते हो ,
ला जंजीरें दुःशासन , हाथ बढ़ा ,
जहाँ जन्मा था ये कृष्ण , आज वही पहुँचा। "
" आजा दुर्योधन , ला दुःशासन ,जंजीरें ला ,
बाँध सकता है तो आज बाँध के दिखा ,
मति फेर दी है काल ने तेरी ,
तू खुद का दुश्मन आज बना ,
शांति के अंतिम प्रयास को ,
तूने आज विफल किया ,
रणचंडी खप्पर लेकर नाचेगी अब ,
दुर्योधन ! युद्ध तेरे अब नाम हुआ।“
कुरु सभा में ये कैसा वज्रपात हुआ ,
बाँधने चले उसको जो निराकार हुआ ,
धृतरास्ट्र की अंधी आँखे ,
क्या ये नजारा देख पाती ,
भरे दरबार केशव का अपमान हुआ।
केशव ने ज्यू -ज्यू आकार ऊँचा किया ,
कुरु सभा में हाहाकार मचा ,
विदुर और भीष्म हाथ जोड़े ,
दुःशासन लाचार हुआ,
प्रकाश फ़ैल गया सभा में ,
हतप्रभ से ,ठगे से -मौन सब ,
बोले चक्रधारी गोवेर्धन मधुसूदन ,
“सुन दुर्योधन , युद्ध तू आज ही हार गया ,
मेरी जगहँसाई न हो ,
मैं सिर्फ इसलिये आया था ,
रोक सकता था मैं युद्ध ,
कल मुझपर ये लाँछन न आये ,
मूढ़बुद्धि , युद्ध कोई समाधान नहीं ,
शांति से फूल खिलते है ,
अच्छा , अब कुरुक्षेत्र में मिलता हूँ,
युद्ध तो अभी ख़त्म कर देता ,
चक्र से अपने सब धुआँ कर देता ,
लेकिन फिर कोई अर्थ नहीं रह जायेगा ,
धर्म -अधर्म की लड़ाई से जग मरहूम रह जायेगा ,
महाभारत होगी अब कुरुक्षेत्र में ,
तू कुरु वंश का कलंक कहलायेगा।“
विदुर खामोश , भीष्म लाचार ,
कर्ण -शकुनि हर्षाये अपार ,
धृतरास्ट्र की मति ह्रास ,
कुरुक्षेत्र में तय हो गया ,
होगा भयंकर नर -सँहार ,
रोक न पाए चक्रधारी भी ,
कोशिश की थी अंतिम बार,
कुरुसभा साक्षी बनी,
विफल हुआ अंतिम प्रयास।
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