ठौर कहाँ ढूढें ये पग ,
इन्हे तो चलते जाना है,
नियति में इक सफर लिखा है,
आज यहाँ, कल न जाने कहाँ जाना हैं।
गठरी हल्की रख मुसाफिर ,
कहाँ कोई स्थायी ठिकाना है ,
कर्मों की एक राह चलाचल ,
आगे किस्मत का खेला है।
कोई गर छूटा है , कोई मिल जायेगा ,
भावों का समंदर है , अनुभव से सीख जायेगा ,
हार क्या , जीत क्या , बेमानी सब यश -अपयश ,
चलते -चलते इक दिन मंजिल पा जायेगा।