समाज को ,
आज खतरा सिर्फ ,
बुरे लोगों से नहीं है ,
उससे ज्यादा खतरा ,
उन अच्छे लोगों से है ,
जो अच्छेपन की आड़ में ,
अंदर से बुरे है ,
और अपनी स्वार्थसिद्धि के लिये ,
इस लबादे के नीचे विष लिये है ,
न ये पहचाने जा रहे है ,
और न इनके पास बुरे होने का ,
कोई ठप्पा है,
धीरे -धीरे समाज को ,
यही लोग दीमक की तरह ,
चट रहे है ,
जो वाकई अच्छे है ,
वो खामोश है ,
और जो घोषित बुरे है ,
अच्छे दिन उन्ही के चल रहे है,
बाकी सब एक दूसरे का मुँह ,
जानबूझकर नहीं तक रहे है ,
कई वजहें सामाजिक है ,
और कई व्यक्तिगत है ,
समाज धीरे -धीरे ढल ही रहा है ,
चीजों को आत्मसात कर रहा है ,
और फिर शायद इक दिन ,
यही समाज आदर्श हो जायेगा।
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