प्रतिनिधि चुनना है ,
जो काम आये लोगों के ,
जो सरकार से बात करे ,
सरकार में शामिल होकर ,
जो जान सके दुःख दर्द ,
जो नब्ज पकड़ सके वक्त -बेवक्त ,
वही जीतना चाहिये ,
उसी को जीताना चाहिए ,
यही है लोकतंत्र का ,
सबसे बड़ा मूलमंत्र ,
अब चुनाव में ,
कौन जीतता है ?
कौन हारता है ?
इसके बहुत से है कारक ,
जनता तो उसे ही चुनेगी ,
जिससे लगेगा ,
वक्त पर सुनेगा बात ,
वर्ना जनता तो अपना दुखड़ा ,
रो ही रही है सालों से ,
सुनता कौन है ?
एक बार चुनाव जीतकर ,
मगर लोकतंत्र की तो आत्मा बसी है चुनावों पर ,
होते रहेंगे जनता से , जनता के लिये , जनता द्वारा ,
जायेंगे सरकार में चुने हुए उम्मीदवार ,
अब उनपर निर्भर ,
कितना अनसुना करेंगे , कितना सुनेंगे ,
आयेंगे फिर लौट कर,
फिर कहाँ जायेंगे बचकर।
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