मैं कौन हूँ, मुझे मुझसे मेरी पहचान करा दे.
भीड़ में खड़ा हूँ, मैं सबसे अलग कैसे हूँ,
ऐ मेरे खुदा मुझे इतना तू बतला दे.
मैं जानता हूँ, तुने मुझे यू ही नहीं भेजा होगा धरती पर,
तू मुझे मेरे मकसद में लगा दे.
यू बेमकसद ज़िन्दगी गुजारी नहीं जाती,
कुछ कर गुजरने की चाहत जीने नहीं देती ,
मगर यू ही वक़्त गुजरता हैं हर रोज़,
मंजिल कौन सी हैं , कहाँ हैं इसका पता नहीं.
हर रोज़ टटोलता हूँ अपने आप को ,
मैं कौन हूँ और मेरा मकसद क्या.
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
Thursday, June 24, 2010
Friday, June 11, 2010
मेरी विवशता .............
पिछले दो हफ्तों से कोई कविता नहीं लिख पाया इसलिए माफ़ी चाहता हूँ.
कोई विषय ऐसा दूंढ नहीं पाया जिस पर शब्दों का जाल बून सकू.
दो चार पंक्तियों से आगे नहीं बड पाया ,
विषय बहुत हैं मन करता हैं सब पर लिखता जाऊ,
मगर कुछ ऑफिस की टेंशन, कुछ और की चिंता,
शब्दों को पिरोने नहीं दे रही,
सुकून से सोच सकू कुछ, हालात कुछ ऐसे बन नहीं रहें.
कविता लिखने के लिए अभी कुछ भी नहीं.
मगर शब्दों की कुलबुलाहट मुझे चैन से रहने भी नहीं देगी,
भावनाओ का ज्वार लेकर में फिर वापस आऊंगा कुछ शब्दों को फिर सार्थक करूँगा.
कोई विषय ऐसा दूंढ नहीं पाया जिस पर शब्दों का जाल बून सकू.
दो चार पंक्तियों से आगे नहीं बड पाया ,
विषय बहुत हैं मन करता हैं सब पर लिखता जाऊ,
मगर कुछ ऑफिस की टेंशन, कुछ और की चिंता,
शब्दों को पिरोने नहीं दे रही,
सुकून से सोच सकू कुछ, हालात कुछ ऐसे बन नहीं रहें.
कविता लिखने के लिए अभी कुछ भी नहीं.
मगर शब्दों की कुलबुलाहट मुझे चैन से रहने भी नहीं देगी,
भावनाओ का ज्वार लेकर में फिर वापस आऊंगा कुछ शब्दों को फिर सार्थक करूँगा.
Tuesday, June 1, 2010
बहन की विदाई ..........
अपनी बहन को शादी के दिन विदा करते हुए,
कितना अपने दिल को समझाया था !
आँखों की कोरे गीली नहीं होने दूंगा ,
रह रह कर मन को समझाया था !
मगर जब विदाई की बेला आई ,
तो खुदबखुद आंसू छलक आये !
उसके साथ बिताये वो हर पल आँखों में तैर गए.
दुनिया की रीत के आगे हम भी झुक गए !
हमारी छोटी सी गुडिया हमें छोड़ के चली गयी ,
हम आँखों में पानी लिए मुस्कराते रह गए !
बचपन से उसकी जवानी तक हम उसके रक्षक बने रहे,
एक दिन फिर एक अनजान से सफ़र पर उसको अकेला विदा कर गए.
(यह कविता समप्रित है सब भाई बहनों को, जिनके बीच स्नेह और प्यार कहा अटूट बंधन होता हैं. )
कितना अपने दिल को समझाया था !
आँखों की कोरे गीली नहीं होने दूंगा ,
रह रह कर मन को समझाया था !
मगर जब विदाई की बेला आई ,
तो खुदबखुद आंसू छलक आये !
उसके साथ बिताये वो हर पल आँखों में तैर गए.
दुनिया की रीत के आगे हम भी झुक गए !
हमारी छोटी सी गुडिया हमें छोड़ के चली गयी ,
हम आँखों में पानी लिए मुस्कराते रह गए !
बचपन से उसकी जवानी तक हम उसके रक्षक बने रहे,
एक दिन फिर एक अनजान से सफ़र पर उसको अकेला विदा कर गए.
(यह कविता समप्रित है सब भाई बहनों को, जिनके बीच स्नेह और प्यार कहा अटूट बंधन होता हैं. )
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