पिछले दो हफ्तों से कोई कविता नहीं लिख पाया इसलिए माफ़ी चाहता हूँ.
कोई विषय ऐसा दूंढ नहीं पाया जिस पर शब्दों का जाल बून सकू.
दो चार पंक्तियों से आगे नहीं बड पाया ,
विषय बहुत हैं मन करता हैं सब पर लिखता जाऊ,
मगर कुछ ऑफिस की टेंशन, कुछ और की चिंता,
शब्दों को पिरोने नहीं दे रही,
सुकून से सोच सकू कुछ, हालात कुछ ऐसे बन नहीं रहें.
कविता लिखने के लिए अभी कुछ भी नहीं.
मगर शब्दों की कुलबुलाहट मुझे चैन से रहने भी नहीं देगी,
भावनाओ का ज्वार लेकर में फिर वापस आऊंगा कुछ शब्दों को फिर सार्थक करूँगा.
क्या बात है... क्या कहें हम... लाजवाब.
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