Wednesday, July 7, 2010

दूसरा पड़ाव ......अंतर्मन की यात्रा .............

खुद पर भरोसा ज्यादा हो गया हैं,
दुसरो से उम्मीदे करना बंद कर दिया हैं .
जीवन पथ के इन रास्तो को ,
अकेले नापने की कवायद शुर कर दी हैं.

मेरे अन्दर खुद खुदा का अंश हैं,
"अहम् ब्र्ह्मष्मी "मंत्र की महता समझ आ गयी हैं.
लेकर साथ अपने अर्धांगिनी और बिटिया को,
जीवन युद्ध में यात्रा अपनी शुरू कर दी हैं.

न किसी से कोई बैर , न किसी से कोई गिला शिकवा,
जीवन पथ के अनजाने सफ़र में हर मुमकिन कोशिश शुरू कर दी हैं.
जीतना हैं इस जंग को हर हाल में ,
मन में ठान ली हैं.

निराशा के बादलो को अपनी उम्मीदों के सूरज से छठा दिया हैं,
विश्वास और संकल्प से हर परिस्थिति से मुकाबला करना हैं.
इश्वर के दिए इस वरदान "जीवन" को,
हर हाल में सार्थक करना हैं. 

2 comments: