Sunday, September 18, 2011

डोर..

थामे डोर ज़िन्दगी की चले थे किस ओर ,


समय के थपेड़ो ने पंहुचा दिया किस ओर,

कुछ अपनी करनी और कुछ भाग्य के सहारे ,

देखो कहाँ से कहाँ पहुच गए हम लोग.

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