थामे डोर ज़िन्दगी की चले थे किस ओर ,
समय के थपेड़ो ने पंहुचा दिया किस ओर,
कुछ अपनी करनी और कुछ भाग्य के सहारे ,
देखो कहाँ से कहाँ पहुच गए हम लोग.
समय के थपेड़ो ने पंहुचा दिया किस ओर,
कुछ अपनी करनी और कुछ भाग्य के सहारे ,
देखो कहाँ से कहाँ पहुच गए हम लोग.
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