आज़ादी को सत्तर वर्ष बीत गए ,
हम अभी तक धर्म संप्रदाय में उलझे रहे ,
दुनिया ने तरक्की के नए आयाम गढ़ लिए ,
हम अभी तक " बेटी बचाओ" में फंसे रहे।
हम मेहनत की कमाई से टैक्स भरते रहे ,
वो हमारे पैसो से मौज उड़ाते रहे।
हम जनता " भाईचारा " बनाते चले ,
वो " फूट डालो " की नीति पर चलते रहे,
आज़ादी को हमारे सत्तर वर्ष बीत गए।
जनता के लिए - जनता द्वारा - जनता से ,
सरकार को हमारी सत्तर साल हो गए,
गरीब जनता से चुने हुए उसके ही प्रतिनिधि ,
न जाने कब से उसकी किस्मत के "ठेकेदार" हो गए,
देखते देखते - आज़ादी को हमारे सत्तर वर्ष बीत गए।
हो सके तो इस दिवस पर - तिरंगे को ध्यान से देखना
इसके लाल रंग में करोडो का बलिदान देखना ,
हरे रंग में सबकी खुशहाली देख लेना ,
चक्र से सबकी प्रगति का मंत्र सीख लेना ,
ध्वज को थामे हुए अपने को देख लेना ,
आज़ादी का सही मतलब खुद ही समझ लेना।