कुछ ढूंढते ढूंढते ,
मिली मुझे मेरी वह पुरानी डायरी ,
जिसे मैं शायद कब का भूल गया था ,
उसका कवर भी अब जैसे दम तोड गया था ,
हाथो से उस पर लगी धूल झाड़ी ,
पहले पन्ना खोला ,
तो जैसे मुस्करा रहा था ,
कितने सालो के बाद साक्षात्कार ,
हो रहा था ,
पूछ रही थी शायद ,
कहाँ थे " इतने साल " ?
उस डायरी का मेरी ज़िन्दगी से बड़ा लगाव था ,
उसके हर पन्ने पर मेरा एक ख्वाब था ,
मेरी अल्हड़पन की ख्वाईशो का ,
वो पुलिंदा था ,
मेरी हसरतो का जैसे वो ,
पूरा चिटठा था।
मेरी दोस्तों के हस्ताक्षरो से ,
किसी पन्ने पर वो डायरी सजी थी ,
मेरी अधपकी कविताओं के ,
बोझ से वह मर रही थी।
कुछ लैंडलाइन नंबर अब भी ,
उसमे चमक रहे थे ,
कुछ लोगो के पते ,
अब भी उसमे लिखे थे।
कुछ पन्नो पर " गणित के सूत्र " ,
अब भी लिखे थे ,
कई पन्ने " हिंदी गानो " से ,
भरे थे।
कुछ चिट्ठिया 'अन्तर्देशी पत्र ' की शक्ल में ,
पन्नो के बीच में दबी पड़ी थी ,
अंतिम पन्ने -मेरी पेंसिल से ,
बने चित्रों से अटे पड़े थे।
किसी पन्ने में ख़ुशी के पल थे ,
किसी पन्ने में स्याह रंग थे ,
कोई पन्ना तो अब भी कोरा था ,
किसी पन्ने पर महान " प्रेरणादायी" विचार चमक रहे थे।
एक पल जैसे सारा बीता बचपन जी गया ,
उन सुनहरी यादो में खो गया ,
जहाँ से चलकर अब मैं खड़ा था ,
उस डायरी के एक एक पन्ने पर अद्धभुत जीवन था।
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