सुलझाते रहो रिश्तो के धागे ,
बहुत महीन और नाजुक होते है ,
देर गर हो गयी तो ,
गाँठ बन जाते है।
बस चार दिन का बसेरा है ये जहाँ ,
किराये का घर है ,
अपना कुछ नहीं यहाँ ,
फिर कुछ खोने से क्या डर है?
कुछ भी स्थायी नहीं जगत में ,
वक्त जो आपके हाथ में है ,
उससे बढ़कर और कुछ भी नहीं
,
जी लो बस " आज " को , क्यूंकि "कल" कभी आता
नहीं।
बेशक योजना बनाओ कल की ,
मगर उसके चक्कर में आज गँवाओ नहीं ,
ये वक्त है ,
एक बार हाथ से फिसला ,फिर लौटता नहीं।
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