ये रंग बिरंगी तितलियाँ मुझे बहुत भाती है ,
फुर्र से उड़ जाती है ,
कभी इस जगह , कभी उस जगह
अपने पंख फड़फड़ाती है।
रंगीनियत सी भरती ये ,
कितनी प्यारी लगती है ,
एक फूल से दूसरे फूल ,
इतराती -इठलाती है।
छोटे से जीवन में ,
कितना जीवन जी जाती हो ,
सुनने में असमर्थ तुम ,
स्वाद का पता पैरो से लगाती हो।
तितली - ओ तितली ,
तुम कितना कुछ सिखा जाती हो ,
स्वछंद होकर अपनी मस्ती में ,
जीवन को एक नया अर्थ दे जाती हो।
काश तुम्हारे जैसा जीवन ,
इंसानो की बस्ती में भी होता ,
छोटी छोटी तितलियाँ भी यु ही इठलाती फिरती ,
कुटिल नजरो से काश वह बच पाती।
बंदखानो दरवाजे के पीछे ,
सिसकियाँ यूँ न गूँजती ,
लेकर अपना जन्म वो ,
तुम जैसा तितली जीवन जी पाती।
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