रोज़ न जाने क्यों वो लड़की ,
घंटो आसमान को ताकती है ,
रोज़ न जाने क्यों वो लड़की ,
बगीचे के हर फूल को सूंघती है ,
रोज़ न जाने क्यों वो लड़की ,
हवा को महसूस करती है ,
रोज़ न जाने क्यों वह लड़की ,
सूरज की पहली किरण को चूमती है।
उसकी माँ ने जाने से पहले उसे ,
बहलाने के लिए कहा था शायद ,
जब भी उसकी याद आएगी ,
आसमां में तारा बनकर वो मिलने आएगी ,
या फिर किसी फूल में खुसबू बन जाएगी ,
या हवा के ठन्डे झोंके में समाकर उसे सहलाएगी ,
या सूरज की पहली किरण बनकर उससे मिलने आएगी।
वो मासूम जानती थी ,
उसकी माँ कभी झूठ नहीं बोलती थी ,
उसने जो बोला था ,
वह तो बस उसको जी रही थी।
आसमान के उस तारे में उसे अपनी माँ दिखाई देती थी ,
उस गुलाब के फूल में उसे अपनी माँ की खुशबू आती थी ,
वो हवा का झोंका जब उसके गालों को छूता था ,
माँ के कोमल हाथो का स्पर्श उसे महसूस होता था ,
सूरज की पहली किरण में माँ की मुस्कान दिखती थी ,
उस मासूम को शायद एहसास नहीं था ,
माँ तो अब कभी न लौटने के लिए चली गयी थी।
वो मासूम जानती थी ,
उसकी माँ कभी झूठ नहीं बोलती थी ,
उसने जो बोला था ,
वह तो बस उसको जी रही थी।
Super hit poem sir
ReplyDeleteखूबसूरत मार्मिक संवेदनायें।
ReplyDelete👌👌👌👌
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