Thursday, July 5, 2018

मासूम

रोज़ न जाने क्यों वो लड़की ,
घंटो आसमान को ताकती है , 
रोज़ न जाने क्यों वो लड़की , 
बगीचे के हर फूल को सूंघती है , 
रोज़ न जाने क्यों वो लड़की , 
हवा को महसूस करती है , 
रोज़ न जाने क्यों वह लड़की , 
सूरज की पहली किरण को चूमती है।  

उसकी माँ ने जाने से पहले उसे ,
बहलाने के लिए कहा था शायद , 
जब भी उसकी याद आएगी , 
आसमां में तारा बनकर वो मिलने आएगी ,
या फिर किसी फूल में खुसबू बन जाएगी ,
या हवा के ठन्डे झोंके में समाकर उसे सहलाएगी ,
या सूरज की पहली किरण बनकर उससे मिलने आएगी।  

वो मासूम जानती थी , 
उसकी माँ कभी झूठ नहीं बोलती थी , 
उसने जो बोला था , 
वह तो बस उसको जी रही थी।  

आसमान के उस तारे में उसे अपनी माँ दिखाई देती थी , 
उस गुलाब के फूल में उसे अपनी माँ की खुशबू आती थी , 
वो हवा का झोंका जब उसके गालों को छूता था , 
माँ के कोमल हाथो का स्पर्श उसे महसूस होता था , 
सूरज की पहली किरण में माँ की मुस्कान दिखती थी , 
उस मासूम को शायद एहसास नहीं था , 
माँ तो अब कभी न लौटने के लिए चली गयी थी।  

वो मासूम जानती थी , 
उसकी माँ कभी झूठ नहीं बोलती थी , 
उसने जो बोला था , 
वह तो बस उसको जी रही थी।  

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