ये कौन लोग है ?
कहाँ से आते है ?
समझ नहीं आता ,
ये क्या कुछ अलग खाते है ?
हममें से ही तो थे कल तक ,
फिर अचानक क्यों खास हो जाते है ,
कुर्सी मिलते ही इतना क्यों बदल जाते है ?
कुछ दोष शायद ,
कुर्सी में होगा ,
काठ की इस रचना में ,
कुछ तो जादू टोना होगा।
कुर्सी जाते ही फिर कैसे खिसयाने लगते है ,
द्वारे द्वारे हाथ जोड़े ,
फिर न जाने शर्म,
कहाँ बेच खा आते है।
बातों और वादों का जाल फिर फैलाते है ,
चाँद तक सड़क पहुँचाने का जिम्मा उठाते है ,
कपडा , रोटी और मकान को तरसती जनता को ,
अपने अनर्गल प्रलापों से लुभाते है।
ये कौन लोग है ?
कहाँ से आते है ?
गिरगिट की तरह रंग बदलने की ,
कला कहाँ से लाते है।
Sir ye koi or nhi hum logu ne bnaye kurshidharak hai..ye humare bnaye hi khas hai..or fir kurshi m aakar humare liye hi nakam hai..ye hi h ek rajneta
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