पंखो को परवाज दिए जमाने हो गए ,
जमाने के आगे बेबस से हो गए ,
क्यों नादानियाँ करने से घबराता है अब दिल ,
क्या अब हम बहुत " सयाने " हो गए।
दर्द अब भी उठता है सीने में ,
आँसू बहाये जमाने हो गए ,
जबरदस्ती की मुस्कराहट को ख़ुशी मत समझ ,
बेबाक हँसी को होंठ तरस गए ।
खुद को इतना रमा दिया जगत में ,
अपना वजूद भूल गए ,
ताकते रहते है अब दुसरो का मुँह अब ,
उनके हिसाब से मनोदशा तय होने लगे।
तेरे जीवन का संघर्ष ,
कौन तुझसे बेहतर जानता है यहाँ ,
अपने दिल से पूछ ,
यहाँ तक पहुँचने में लोगो को जमाने लग गए।
तेरे सपने तेरे अपने है ,
तेरे जूनून को दुनिया क्यों समझे ,
कदम बढ़ाने ही होंगे ,
बिना मेहनत के कहाँ , किसके सपने सच हुए।
अतिसुन्दर पंतिया खूबसूरत सर।
ReplyDelete