Friday, July 20, 2018

मॉडर्न वाला इश्क ( व्यंग्य )




सुना है इश्क का रंग बड़ा गहरा होता है ,
जिसे हो जाये , बस उसे ही लगता है 
पर आज के जमाने को देखकर लगता है , 
लद गए वो जमाने अब , 
मॉडर्न वाला इश्क चलता है।    

व्यावहारिक हो गया है इश्क अब , 
कई कसौटियों पर तुलता है , 
दिल से नहीं गुजरता अब , 
दिमाग में पहले उतरता है।  

नहीं रही अब वो संजीदगी , 
इश्क होने से पहले ब्रेकअप हो जाता है , 
तू न सही , और कोई सही , 
फार्मूला हर बार काम कर जाता है।  

इश्क अब यूँ ही नहीं होता , 
पूरी पड़ताल के बाद होता है , 
नजरे मिलाने से पहले , 
उसका फेसबुक, ट्विटर और इंस्ट्रागाम जरूर चेक होता है।  

जरुरी भी है वक्त बदल गया है , 
समय के साथ जरूर चलना चाहिए , 
इश्क को भी इस दौर के इम्तेहान देने चाहिए , 
उसकी "हां" या "न " के इंतजार के बीच दो चार ऑप्शन और होने चाहिए।   

1 comment:

  1. Super poem sir..
    मॉडर्न वाला प्यार।।

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