जो थोड़े से शब्द है ,
उनको पिरोकर कुछ लिख लेता हूँ ,
भावनाओ की स्याही से ,
कागज पर कभी आँसू , कभी मुस्कान रख देता हूँ।
उड़ते रहते है ये कागज मेरे कमरे में ,
मैं भी जानबूझकर इन्हे खुला रखता हूँ ,
किसी पन्ने से आँसू टपकते है ,
किसी पन्ने पर कहकहे लगते है।
शायद ज़िन्दगी भी तो ऐसी ही है ,
जहाँ आँसू और हँसी साथ साथ चलते है ,
कुछ यादों की गठरी , कुछ ख्वाब कल के ,
आज में हम यहीं तो जीते है।
कुछ कवितायेँ , कुछ कहानियाँ रचता रहता हूँ
शब्दों की दुनिया में "फ़कीर " जैसा लगता हूँ ,
सीखता रहता हूँ शब्दों को करीने से सजाना ,
कभी तो बोल उठेंगे "मेरे शब्द" भी - इस उम्मीद में रोज़ लिखता हूँ।
Nice sir,super
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