बस इतना पता है ,
खाली हाथ आया था ,
खाली हाथ ही जाऊँगा ,
मिलेगा जो भी इस बीच में जहाँ से ,
दर्द मिले या सुकून ,
इज्जत मिले या दुत्कार ,
कुछ नहीं ले जा पाउँगा ,
यादों की गठरी ,
जब तक हूँ ,
उठाता रहूँगा ,
जीवन के इस कारवाँ में ,
एक मुसाफिर ही तो हूँ ,
एक दिन किसी मोड़ पर ,
सबसे बिछुड़ जाऊँगा ,
छोड़ जाऊंगा तो शायद ,
कुछ शब्दों की लड़िया ,
कुछ अपने बोल ,
कुछ सुलझे,
कुछ उलझे,
लगा लेंगे अर्थ अपने अपने ,
जिन्हे समझना होगा ,
अपने जीने के अर्थ को ,
शब्दों में ढाल जाऊंगा,
कोई भूला भटका पहचान ले अगर ,
शायद उसका सफर आसान कर जाऊँगा,
नाम से मत याद रखना मुझे ,
कर्मो से अपने एक लकीर खींच जाऊँगा ,
"अटल" सत्य में एक न एक दिन ,
मैं " अटल " भी समां जाऊँगा।
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