ख्वाईशो का समंदर टकरा गया इक दिन ,
हकीकतों की चट्टानों से ,
ऐसा मंथन हुआ दोनों का ,
दोनों में ठन गयी ,
थक गए जब दोनों ,
सुलह के रूप में ,
एक नदी की धार निकली ,
समंदर से पानी लेकर ,
चट्टानों के बीच से ,
अपना रास्ता बनाकर ,
वह सपाट मैदानों में बह निकली ,
स्वछंद और मदमस्त बहाव से ,
किनारो को मुस्कान देकर ,
वह जीवन सागर से मिलने चल दी।
अब न उसपर ख्वाईशो का बोझ है
,
हकीकत से वास्ता जोड़ लिया
है ,
अब तो उसे अपनी रौ में बहना है
,
जो मिलना है रास्ते में
,
अपने में समेटकर तरना है।
कितना सरल है जीवन का यूँ बहना ,
न जाने कठिन कैसे हो जाता है ,
फिर वही मंथन , फिर टकराव,
जीवन का बहाव थम सा जाता है।
ख्वाईशो और हकीकत में सामंजस्य रखिये ,
जीवन को सरल और बहने दीजिये ,
आपको भी जीवन जीने का मजा आएगा ,
जीवन भी अपना अर्थ पा जायेगा।
Nice good one bhaiya JEE
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