अब
स्वर्ग से नहीं उतरेंगे
फरिश्ते
,
और
न पाताल से जन्मेंगे
राक्षस,
इसी
पृथ्वी पर ,
धरती
और आकाश के बीच
जन्मेंगे
,
पनपेंगे
,
और
,
नियति
को पाएंगे ,
सब
,
इर्द
गिर्द ,
मौजूद
रहेंगे ,
हर
वक्त ,
फरिश्ते
,
और
राक्षस ।
नजर
पैनी चाहिए ,
जो
पहचान सके ,
कौन
फरिश्ता
और
कौन राक्षस ,
न
रंग में भेद होगा ,
न
फ़रिश्तो के पर होंगे ,
राक्षस
अट्टहास नहीं करेंगे ,
बड़ी
मुश्किल ,
पहचानने
में ,
किसके
अंदर छुपा क्या है ,
कौन
छुपाये बैठा है खंजर ,
किसकी
नीयत क्या है ?
किसी
को नहीं खबर ,
मानुष
के रूप में ,
फरिश्ता
भी है ,
और
राक्षस भी।
तय
नहीं है अब
श्वेत
वस्त्र में फरिश्ते ही होंगे ,
काले
कपड़ो में सिर्फ ,
राक्षस
ही मिलेंगे ,
बदल
गयी है दुनिया ,
बदल
गया है समाज ,
खुद
ही संभल कर ,
चलिए
,
खुद
ही पहचानना होगा ,
कौन
फरिश्ता ,
और
कौन
राक्षस,
कौन
दोस्त ,
और
,
कौन
दुश्मन।
हां
, मुश्किल है थोड़ा ,
मगर
असंभव नहीं ,
खुले
रखिये अपने पाँचो इन्द्रियाँ ,
संकेत
मिलेंगे वहीँ,
पहचान
जायेंगे आप ,
कौन
गलत ,
और
,
कौन
सही।
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