नन्ही चिड़िया ढूंढ रही ,
कहीं तो मिले उसे छाँव ,
पेड़ो की डालियाँ कट गयी ,
बेचारी अब कहाँ जाय।
पोखर , तालाब
नदी , नाले सब सुख गए ,
कहाँ तक अब पंख फड़फड़ाय ,
बेरहम सूरज कुछ तो तरस खा ,
अब ये नन्ही चिड़िया कहाँ जाये।
आग बरसा रही किरणे ,
धरती बन रही शोला ,
घर के मुंडेर रहे नहीं अब ,
कहाँ अब अपना घौंसला बनाये ,
अब ये नन्ही चिड़िया कहाँ जाये।
उड़ने से पहले सोचे ,
कहीं कोई डाल मिल जाये ,
दूर तक फैला बंजर ,
इस तपती गर्मी में ,
नन्हे पँख झुलस जाय,
अब ये नन्ही चिड़िया कहाँ जाये।
किससे अपना दर्द कहें ,
कुछ समझ न आये ,
मृगतृष्णा सी प्यास उसकी ,
दूर दूर भटकाये ,
अब ये नन्ही चिड़िया कहाँ जाये।
बनाओ तुम अट्टालिकाएं ,
करो प्रकृति से खिलवाड़ ,
वृक्ष न बचेंगे धरा पर गर तो ,
तुम्हारा भी होगा ऐसा ही हाल ,
सोचो और बताओ ,
अब ये नन्ही चिड़िया कहाँ जाये।